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एक हफ़्ते के भीतर हुई दुर्घटनाओं में दो श्रीलंकाई वर्करों की मौत

यह हिंदी अनुवाद अंग्रेज़ी के मूल लेख 2 Sri Lankan workers die in industrial accidents in 1 week का है जो नौ नवंबर 2025 को प्रकाशित हुआ था।

पिछले हफ़्ते रविवार और बुधवार को श्रीलंका में दो अलग अलग फ़ैक्ट्रियों में दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें दो वर्करों की मौत काम करते हुए हो गई।

पहली दुर्घटना तक हुई एक लेटेक्स रबर प्रासेसिंग फ़ैक्ट्री में एक मशीन फट गई। यह फ़ैक्ट्री कोलंबो से 75 किलोमीटर पूर्व की ओर यतियांतोटा के किरिपोरुवा में स्थित है। दूसरी मौत देश के मध्य में पहाड़ी इलाक़े मास्केलिया की मौसाकेल्ले टी फ़ैक्ट्री में हुई, जब एक वर्कर का सिर टी रोलिंग मशीन में फंस गया।

रजनीकांत

जिन लोगों की मौत हुई उनमें रबर प्रोडक्ट फ़ैक्ट्री में अविवाहित एक 25 साल के रजनिकांत की थे जबकि टी फ़ैक्ट्री में 49 साल के कृष्णन विजयकुमार थे। विजयकुमार की पत्नी का देहांत हो चुका था और उनके चार बच्चे हैं।

किरिपोरुवा एस्टेट में मौत

रबर प्रोडक्ट बनाने वाली फ़ैक्ट्री में काम करने वाले रजनिकांत की मौत, हेलेज़ ग्रुप आफ़ कंपनीज़ की एक सब्सिडियरी डिप्ड प्रोडक्ट्स लिमिटेड में हुई। इस ग्रुप के मालिक हैं श्रीलंका के अरबपति उद्योगपति धम्मिका परेरा और मोहन पंडितागे।

एक प्रत्यक्षदर्शी वर्कर ने वर्ल्ड सोशलिस्ट वेब साइट (डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस) रिपोर्टर को बताया कि मशीन फटने के कारण रजनीरकांत के सीने और चेहरे पर बहुत गंभीर घाव हो गया था और मशीन के हिस्से उनसे टकरा गए। मशीन को वही चला रहे थे। उनका एक हाथ पूरी तरह अलग हो गया था।

इसी दुर्घटना में दो अन्य मज़दूर श्रीस्कंदराजा (47) और पुष्पानागम, भी घायल हुए हैं, उन्हें पास के कारावानेल्ला हॉस्पीटल में भर्ती कराया गया है।

अस्पताल में श्रीस्कंदराजा

कंपनी के अनुसार, लेटेक्स प्रोडक्शन, सेंट्रीफ़्यूगल मशीन का इस्तेमाल करके किया जाता है। एक्सपर्ट्स ने आशंका जताई है कि इस तरह की मशीन में विस्फोट, सेफ़्टी उपायों और मरम्मत की कमी से हुआ हो सकता है।

विशेष तौर पर, ओवर स्पीड ट्रिप सिस्टम, कंपन और तापमान सेंसर, ऑटोमेटिक शटडाउन इंटरलॉक्स और विस्फोट निरोधक केसिंग जैसे सेफ़्टी उपाय ज़रूरी होते हैं। हालांकि, वर्करों ने बताया कि मशीन तीन दशक पुरानी थी और लगता है कि इन अधिकांश सुरक्षा उपायों की कमी थी।

हालांकि आधुनिक मशीन में इस तरह के एडवांस्ड सेफ़्टी सिस्टम मौजूद होते हैं ताकि वर्करों की ज़िंदगी को बचाया जा सके, लेकिन ऐसा स्पष्ट तौर पर लगता है कि वर्करों की ज़िंदगी पर अपने मुनाफ़े को प्राथमिकता देने वाले अन्य पूंजीवादियों की तरह, इस कंपनी के मालिकों ने ख़तरनाक हालात में भी इस मशीन को चलाना जारी रखा, जबकि अधिक सुरक्षा उपायों वाले सिस्टम लगे नए उपकरणों की बजाय इस आउटडेटेड मशीन को चलाया जा रहा था।

पुरुष वर्कर किरिपोरुवा एस्टेट में स्थित इस फ़ैक्ट्री में इसलिए काम करते हैं क्योंकि इससे उन्हें 1,350 रुपये (4.50 डॉलर) से थोड़ा अधिक आमदनी हो जाती है। वे हर रोज़ इस फ़ैक्ट्री में रबर टैपिंग का काम करते हैं। हालांकि फ़ैक्ट्री में हर महीने में उन्हें कुछ दिन ही काम मिल पाता है।

उत्पादन टार्गेट पाने के लिए, वर्करों को सुबह सात बजे से रात 10 बजे तक काम करना पड़ता है।

एक वर्कर ने बताया, “अगर आप 10 राउंड के टार्गेट को पूरा कर लेते हैं तो आप सामान्य मज़दूरी से चार गुना अधिक कमा सकते हैं। लेकिन चूंकि मशीन गरम हो जाती है तो सुरक्षा उपकरण पहन कर काम करना मुश्किल हो जाता है। अगर हम काम जारी रखें, तो हम टार्गेट हासिल कर सकते हैं। इसलिए हमें बिना सुरक्षा उपकरण पहने ही काम करने को मजबूर होना पड़ता है।“

पड़ोसियों से घिरे रजनीकांत के पिता, माता और बहन

दुख ज़ाहिर करने वाले वाले पड़ोसियों ने बताया कि रजनीकांत के बच्चों की शादी हो चुकी है और वे अलग रहते हैं। इसलिए इस मौत के साथ, रजनीकांत के माता पिता बेसहारा हो गए हैं जो कि उनकी आमदनी के ही सहारे जी रहे थे।

परिवार के सदस्यों के अनुसार, डिप्ड प्रोडक्ट्स कंपनी की ओर से अभी तक कोई मदद या मुआवाज़ा नहीं मिला है।

एक घायल वर्कर ने कहा, “हमें नहीं पता कि, हमारा बीमा भी हुआ था कि नहीं। लेकिन फ़ैक्ट्री का कहना है कि मुआवाज़ा दिया जाएगा।“

मास्केलिया में हुई मौत

मौसाकेल्ले टी फ़ैक्ट्री और एस्टेट में विजयकुमार की मौत हुई थी। यह मास्केलिया प्लांटेशन कंपनी की फ़ैक्ट्री है, जिसकी मालिक है- रिचर्ड पीरिस कंपनी (एआरपीआईसीओ), जोकि श्रीलंका की एक अन्य बड़ी कारपोरेट कंपनी है।

शनिवार को विजयकुमार के अंतिम संस्कार के मौके पर उनके परिवार के लोग और उनके साथ कुछ काम करने वाले वर्करों ने डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस से बात की। इस घटना से अवाक् और आक्रोशित वर्करों ने कहा कि एआरपीआईसीओ को इसकी पूरी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।

कृष्णन विजयकुमार के अंतिम संस्कार में मौसाकेल्ले एस्टेट के कर्मचारी डब्ल्यूएसडब्ल्यूएस रिपोर्टर से बात करते हुए

एक वर्कर ने विस्तार बताया कि, 'विजयकुमार की मशीन के साथ ही स्थित मशीन पर मैं भी काम करता हूं। तीन पायों वाली इन मशीनें में तीन सेफ़्टी गार्ड होना चाहिए। अगर ये सेफ़्टी गार्ड लगे होते हैं, तो ये हाथ या शरीर के किसी अन्य हिस्से को मशीन में जाने से रोकते हैं।'

“लेकिन जिस मशीन को विजयकुमार चला रहे थे, उसमें ये तीनों सुरक्षा उपाय नहीं थे। इसीलिए उनका जैकेट मशीन में फंस गया। वो मशीन में खिंचते चले गए और उनके सिर के पीछे का हिस्सा मशीन से टकरा गया। अगर सेफ़्टी गार्ड्स होते, तो उनकी ज़िंदगी को बचाया जा सकता था।“

इस फ़ैक्ट्री की मशीनों पर पहले काम कर चुके और अब कहीं और काम करने वाले एक अन्य कर्मचारी ने कहा कि वर्करों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक अलग अधिकारी होना चाहिए।

“वर्करों के काम पर लगने से पहले, मशीन की जांच होनी चाहिए। दरअसल, कई सालों से मशीन में सेफ़्टीगार्ड नहीं थे। सिर्फ़ यही नहीं वर्करों के सुरक्षा उपकरणों की भी जांच होनी चाहिए। यही कारण है कि उनका जैकेट मशीन में फंस गया था।“

“वास्तविकता में, इन ख़तरनाक़ हालात के बारे में वर्करों को जानकारी नहीं दी गई। किसी भी सूरत में, किसी भी मौत का प्राथमिक कारण होता है सेफ़्टी गार्ड्स का न होना। उनकी मौत के लिए कंपनी को पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।“

पास ही लक्षापाना टी फ़ैक्ट्री में हाल ही में लगी आग का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वहां कोई फ़ायर अलार्म सिस्टम ही नहीं था, “हालांकि मौसाकेल्ले फ़ैट्री में पानी और बाल्टियां मौजूद हैं, लेकिन वर्करों को इसकी कोई ट्रेनिंग नहीं दी जाती थी कि आग को कैसे बुझाया जाए।“

एक अन्य वर्कर ने कहा कि मशीन को चालू और बंद करने के लिए जो स्विच लगे होते हैं, वे खुले हुए हैं और उनसे बिजली के झटके लगते हैं, “मैंने फ़ैक्ट्री में ज़िम्मेदार अधिकारी को इसके बारे में कई बार बताया था लेकिन कोई भी कार्रवाई नहीं की गई। अब हम उस स्विच को लकड़ी की डंडी से चलाते हैं।“

उस वर्कर ने कहा कि फ़ैक्ट्री में चाय की पत्तियों को रोल करने का काम रात 10 बजे शुरू होता है और जिस दिन बहुत अधिक काम होता है, उन्हें दूसरे दिन रात 1.30 बजे तक काम करना पड़ता है। हालांकि अधिक काम करने के लिए वर्करों को ओवरटाइम दिए जाने का प्रावधान है, लेकिन यह एक या दो घंटे तक के लिए सीमित है और इसके बाद का ओवरटाइम काट लिया जाता है।

“हमारे इतने शोषण के बावजूद, कंपनियों का कहना होता है कि वो हमारी मज़दूरी नहीं बढ़ा सकतीं। चाहे हम कष्ट झेलें, घायल हों या विजयकुमार की तरह मशीन में फंस कर मर जाएं, उनको इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। वो बस चाहते हैं कि हम मरते हैं तो मर जाएं, ताकि वे पैसे बना सकें। ये बंद होना चाहिए।“

कृष्णन विजयकुमार के जीवन को याद करते हुए बैनर

मज़दूरों के अंदर बढ़ते आक्रोश को दबाने की कोशिश में, एस्टेट मैनेजर ने विजयकुमार के बच्चों से वादा किया कि उनकी मौत के लिए मुआवाज़ा दिया जाएगा। वर्करों का कहना है कि इन ज़ुबानी वादों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

सभी पूंजीवादी मीडिया संस्थानों ने रिपोर्ट किया कि किरिपोरुवा एस्टेट फ़ैक्ट्री के लेटेक्स मशीन में हुए धमाके से हुई मौत एक आम दुर्घटना है और मौसाकेल्ले फ़ैक्ट्री में हुई मौत तो महज वर्कर के जैकेट के मशीन में फंसने की वजह से हुई थी। ये दिखाता है कि उनके लिए वर्करों की ज़िंदगियों के लिए ज़रा सी भी इज़्ज़त नहीं है।

औद्योगिक हत्याएं

ये दोनों मौतों नहीं हुई होतीं अगर वहां वर्करों की सुरक्षा के लिए तंत्र मौजूद होता। ये औद्योगिक हत्याओं के बराबर हैं। ये बड़ी कंपनियां केवल मुनाफ़ा निचोड़ने में दिलचस्पी रखती हैं, ज़िंदगियों की इन्हें चिंता नहीं है।

ट्रेड यूनियन की नौकरशाही इन कंपनियों के लिए साथ गलबहियां करती है और एक के बाद एक आने वाली सरकारें, नियोक्ताओं द्वारा किए जाने वाले अपराधों के लिए ज़िम्मेदार हैं। एक वर्कर ने कहा, 'बिना ट्रेड यूनियन नेताओं और सरकार के सपोर्ट के, कंपनियां इस तरह का व्यवहार करने के हिमाकत नहीं कर सकतीं। लेकिन यूनियन नेता और सरकार इस बारे में कुछ नहीं करते।'

बागान वर्कर, श्रीलंका में मेहनतकश वर्ग का सबसे उत्पीड़त तबका है और वो मासिक तनख़्वाह और पेड लीव, दोनों से मरहूम है।

डिपार्टमेंट ऑफ़ सेंसस और स्टेटिस्टिक्स द्वारा 2023 में की गई गणना के अनुसार, चार सदस्यों वाले एक परिवार को बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए न्यूनतम 90,000 से 100,000 रुपये की मासिक आय की आवश्यकता होगी। हालांकि, अब जीवन-यापन की लागत और भी बढ़ गई है, इसलिए एक बागान मज़दूर का औसत वेतन लगभग 25,000 रुपये है। वे 12 बाई 10 फुट के बैरक जैसे कमरों में रहते हैं, जिनमें से ज़्यादातर लगभग 100 साल पहले बने थे और जिनकी कई बार मरम्मत की गई है।

कृष्णन विजयकुमार का लाइन रूम, जिनकी मृत्यु 5 नवंबर, 2025 को मौसाकेले चाय कारखाने में काम करते समय हुई थी।

श्रीलंका में औद्योगिक दुर्घटनाओं में घायल या मारे गए वर्करों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के ताज़े आंकड़ों के अनुसार, श्रीलंका में हर साल कार्यस्थलों पर लगभग 2000 ऐसी दुर्घटनाएं होती हैं जो जानलेवा नहीं होतीं जबकि 60 से 80 दुर्घटनाएं होती हैं जो जानलेवा होती हैं।

हाल के समय में हुई मौतेंः-

  • 8 अगस्त, 2025 को कोलंबो पोर्ट इंटरनेशनल कंटेनर टर्मिनल पर एक दुर्घटना में 51 साल के प्राइम मूवर चालक की मृत्यु हो गई।
  • अगस्त 2025 के अंत में कोलंबो के उपनगर मकोला, सपुगास्कंद में एक औद्योगिक दुर्घटना में रत्नापुरा निवासी 35 वर्षीय व्यक्ति की मशीनरी में फंसने से मृत्यु हो गई।

तथाकथित औद्योगिक देशों से लेकर पिछड़े देशों तक, कार्यस्थलों पर होने वाली मौतों की संख्या दुनिया भर में बढ़ रही है। उदाहरण के लिए, 10 अक्टूबर को अमेरिका के टेनेसी के बक्सनॉर्ट स्थित हथियार बनाने वाली कंपनी एक्यूरेट एनर्जेटिक सिस्टम्स (एईएस) में हुए विस्फोट में 16 वर्करों की मौत हो गई। 14 अक्टूबर को बांग्लादेश की राजधानी ढाका के मीरपुर इलाके में एक कपड़ा कारखाने में आग लग गई, जिसमें 16 मज़दूर जलकर मर गए।

मुनाफ़े की चाह में सुरक्षा उपायों में कटौती के कारण होने वाली ये मौतें सिर्फ़ 'औद्योगिक दुर्घटनाएं' नहीं हैं—ये पूंजीवाद द्वारा पैदा की गई हत्याएं हैं।

सोशलिस्ट इक्वालिटी पार्टी मज़दूरों से अपील करती है कि वे हर कारखाने, बागानों और अन्य कार्यस्थलों पर वर्करों की एक्शन कमेटियां बनाएं जो उनकी जान बचाने के साथ-साथ उनकी नौकरियों और मज़दूरी के लिए भी लड़ सकें।

ऐसी कमेटियों को, असुरक्षित परिस्थियों के तहत किए जा रहे उत्पादनों को रोक देना चाहिए, सभी सुरक्षा उपायों के बारे में जानकारी सार्वजनिक किए जाने की मांग करनी चाहिए और उन लोगों को न्याय के कटघरे में लाना चाहिए जो इसके ज़िम्मेदार हैं।

इस संघर्ष में मज़दूर वर्ग की अंतरराष्ट्रीय एकजुटता स्थापित करना ज़रूरी है। रैंक-एंड-फ़ाइल कमेटियों का इंटरनेशनल वर्कर्स अलायंस, पूंजीवाद के ख़िलाफ़ और अंतरराष्ट्रीय समाजवाद के लिए संघर्ष में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मज़दूरों को संगठित करने के लिए संघर्ष कर रहा है।

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